परिचय
कहानियाँ केवल मनोरंजन के साधन नहीं होतीं, बल्कि वे हमारे जीवन में महत्वपूर्ण सीख भी देती हैं। आज हम बात करेंगे माधवपुर कस्बे में हो रहे एक मंदिर निर्माण की और उसमें एक शरारती बंदर की कहानी की, जिसमें हमें जीवन में संयम और अनुशासन का महत्व समझाया गया है।
माधवपुर कस्बे में मंदिर का निर्माण
मंदिर का ऐतिहासिक महत्व
माधवपुर कस्बे में एक प्राचीन और विशाल मंदिर का निर्माण हो रहा था। यह मंदिर कस्बे के निवासियों के लिए आस्था का प्रतीक था और इसके निर्माण से लोगों में नई ऊर्जा का संचार हो रहा था।
निर्माण कार्य में व्यस्त मजदूर
मंदिर निर्माण में दर्जनों मजदूर दिन-रात मेहनत कर रहे थे। कुछ लकड़ी काट रहे थे, तो कुछ पत्थरों पर नक्काशी कर रहे थे। हर मजदूर अपने काम में तल्लीन था और मंदिर के निर्माण में अपना सर्वोत्तम योगदान दे रहा था।
बंदरों का आगमन
बंदरों का दल और उनका व्यवहार
मंदिर निर्माण स्थल के आसपास कुछ बंदरों का दल भी रहता था। वे अक्सर निर्माण स्थल पर घूमते रहते और मजदूरों को काम करते देख उत्सुकता से देखते रहते थे।
राजा बंदर का आदेश
बंदरों के राजा ने उन्हें सख्त आदेश दिया कि वे निर्माण स्थल पर शांति बनाए रखें और किसी प्रकार की शरारत न करें। सभी बंदर इस आदेश का पालन कर रहे थे, सिवाय एक छोटे शरारती बंदर के।
छोटे शरारती बंदर की नजरें
मजदूरों के काम में रुचि
छोटा शरारती बंदर मजदूरों को काम करते देखता रहा। उसे लकड़ी काटने और कील ठोंकने का काम बड़ा रोचक लग रहा था। धीरे-धीरे उसकी जिज्ञासा बढ़ने लगी और वह मजदूरों की अनुपस्थिति का इंतजार करने लगा।
कील और लकड़ी में फँसने की घटना
आधे कटे हुए लट्ठे में कील ठोंक दी गई थी ताकि वह बंद न हो जाए। लेकिन जैसे ही बंदर ने कील को निकालने की कोशिश की, उसका पैर लट्ठे में फँस गया।
मजदूरों का भोजन ब्रेक
मजदूरों का भोजन के लिए जाना
दोपहर का समय हुआ और मजदूर खाना खाने के लिए गए। यह देख कर बंदर को मौका मिला कि अब वह अपनी शरारत का खेल खेल सकता है।
आधे कटे लट्ठे में कील ठोंकने का कारण
मजदूरों ने आधे कटे लट्ठे में कील इसलिए ठोंक दी थी ताकि लकड़ी का टुकड़ा बंद न हो जाए। यह निर्माण का एक सामान्य तरीका था, लेकिन बंदर को यह समझ नहीं आया।
शरारती बंदर का जिज्ञासा
निर्माण स्थल में प्रवेश
जैसे ही मजदूर गए, बंदर निर्माण स्थल में घुस गया और चीजों को इधर-उधर फेंकना शुरू कर दिया। उसे यह सब देखकर मजा आ रहा था और वह खुद को एक मजदूर जैसा महसूस कर रहा था।
चीज़ें इधर–उधर फेंकना
छोटे बंदर ने निर्माण स्थल पर रखी चीज़ों को इधर-उधर फेंकना शुरू किया। उसे यह खेल बहुत मजेदार लग रहा था और वह अपनी शरारतों में मग्न हो गया।
कील निकालने की कोशिश
कील निकालने का प्रयास
बंदर ने पूरी ताकत से कील को निकालने की कोशिश की और आखिरकार सफल हो गया। जैसे ही उसने कील निकाली, वह खुश हो गया, लेकिन उसे पता नहीं था कि उसकी इस शरारत का क्या अंजाम होगा।
पैर का लट्ठे में फँसना
जैसे ही कील बाहर आई, बंदर का पैर लकड़ी में फँस गया। अब वह दर्द में चिल्लाने लगा और उसे समझ में आया कि उसने कितनी बड़ी गलती कर दी है।
छोटे बंदर का डर और दर्द
चोट लगने पर रोना
पैर फँसने से बंदर को गहरी चोट लगी और वह दर्द से कराहने लगा। उसकी आँखों से आँसू निकलने लगे और उसे अब अपनी शरारत पर पछतावा होने लगा।
मजदूरों को देखकर घबराना
इसी बीच मजदूर खाना खाकर वापस आने लगे। छोटे बंदर ने मजदूरों को अपनी ओर आते देखा और डर के मारे अपनी टांग खींचने लगा।
मजदूरों की वापसी
बंदर का डरना और भागना
जैसे ही मजदूर पास आए, बंदर घबराहट में अपनी टांग खींचकर भागने लगा। आखिरकार उसने खुद को आज़ाद कर लिया और तुरंत वहां से भाग गया।
फिर कभी शरारत न करने का संकल्प
भागते हुए बंदर ने सोचा कि उसने अपनी शरारत के कारण खुद को बहुत तकलीफ दी और अब से वह कभी किसी के काम में हस्तक्षेप नहीं करेगा।
नैतिक शिक्षा
दूसरों के मामलों में हस्तक्षेप के परिणाम
इस कहानी से यह सिखने को मिलता है कि बिना किसी कारण दूसरों के काम में हस्तक्षेप करने से हमें मुसीबत का सामना करना पड़ सकता है। हर किसी को अपने कार्य में लगे रहना चाहिए और बिना वजह दूसरों के मामलों में टांग नहीं अड़ानी चाहिए।
निष्कर्ष
कहानी हमें यह सीख देती है कि दूसरों के काम में हस्तक्षेप करना हमें खुद ही मुसीबत में डाल सकता है। इसलिए हमें अपनी सीमाओं का ध्यान रखना चाहिए और अनुशासन में रहना चाहिए। यह कहानी बच्चों को सिखाती है कि शरारत करने से कभी-कभी बड़ा नुकसान हो सकता है और दूसरों के कार्यों का सम्मान करना चाहिए।
FAQs of एक शरारती बंदर की कहानी:
- इस कहानी का मुख्य संदेश क्या है?
- कहानी का मुख्य संदेश यह है कि दूसरों के मामलों में हस्तक्षेप करने से हमें कठिनाइयों का सामना करना पड़ सकता है।
- यह कहानी किसके बारे में है?
- यह कहानी एक शरारती बंदर के बारे में है जो मंदिर निर्माण स्थल पर शरारत करता है और अंत में उसे पछताना पड़ता है।
- इस कहानी में नैतिक शिक्षा क्या है?
- नैतिक शिक्षा यह है कि बिना वजह दूसरों के काम में दखल देना नुकसानदायक हो सकता है।
- बंदर को क्या सबक मिला?
- बंदर ने यह सीखा कि शरारत करने से उसे नुकसान हुआ और उसने फिर कभी शरारत न करने का संकल्प किया।
- बच्चों को यह कहानी क्यों पढ़नी चाहिए?
- यह कहानी बच्चों को अनुशासन और दूसरों के कार्यों का सम्मान करने की सीख देती है।
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